दिल्ली की सर्दियाँ हमेशा से ही तेज़ थीं, लेकिन इस बार तो सर्दी हवा में नहीं, आर्यन की ज़िंदगी में भी उतर आई थी।
सारा दिन ऑफिस में भागदौड़, बॉस की डाँट, अकेले फ्लैट में लौटना- सब कुछ उसे अंदर से थका चुका था।
शाम का वक्त था, आसमान हल्का धुँधला, और खिड़की के बाहर कबूतर किसी बात पर झगड़ रहे थे।
आर्यन ने थककर अपना बैग एक तरफ फेंका और अलमारी खोलकर अपने कपड़े ढूँढने लगा। उसके हाथों में फाइलें, कपड़े, कुछ पुराने रसीदें… और अचानक एक कोने में दबा हुआ वो पुराना भूरा स्वेटर दिख गया।
हल्का-सा धागा निकला हुआ…
थोड़ा फीका पड़ा रंग…
लेकिन हाथ में लेते ही एक अजीब-सी माँ वाली गर्मी महसूस हुई।
यादों का दरवाज़ा खुलना
जैसे ही उसने स्वेटर उठाया, बचपन की तस्वीरें उसके सामने तैरने लगीं।
उसे याद आया-
हर साल नवंबर में माँ सबसे पहले उसका स्वेटर निकालती थीं और पूछती थीं,
“इस बार तुझे कौन-सा रंग चाहिए बेटा?”
और वो हमेशा बोलता था,
“माँ ये भी ठीक है… बस ठंड न लगे।”
माँ हमेशा हँसती थीं,
“ठंड तेरे बाप को लगेगी। तू तो बस बहाना ढूँढता है छींके मारने का।”
उनकी हँसी में एक अजीब-सी मिठास थी… जो अब बस यादों में बची थी।
बड़ा होना- और माँ से दूर होना
कॉलेज आने के बाद सब बदल गया।
दोस्त, मोबाइल, स्टाइल, सेल्फी-इन सबके बीच माँ की नरम ऊन से बुनी दुनिया कहीं पीछे छूट गई।
एक बार उसने कॉलेज में मम्मी का बुना हुआ स्वेटर पहना था तो उसके दोस्त हँसने लगे थे,
“भाई! ये तो गाँव वाला लगता है।”
आर्यन भी हँस पड़ा था।
लेकिन उस रात जब माँ ने वीडियो कॉल पर पूछा,
“कैसा लग रहा है स्वेटर?”
तो उसने झुँझलाकर कहा,
“माँ! प्लीज़… अब बच्चे नहीं हैं हम। ये पुराने स्टाइल मत भेजा करो।”
कुछ पल की चुप्पी के बाद माँ ने बस इतना कहा,
“अच्छा… कोई बात नहीं बेटा।”
लेकिन उनके चेहरे पर आई हल्की उदासी उसे याद नहीं रही।
अब याद आई… और बहुत गहरी लगी।
वो रात जब माँ बीमार थीं
आर्यन ने स्वेटर को सीने से लगाया और उसे एक और बात याद आई।
कुछ साल पहले, एक ठंडी रात में माँ तेज़ बुखार में थीं।
फिर भी वो उठकर उसके लिए सूप बनाने रसोई में चली गई थीं।
वो कहती थीं,
“तेरा गला बंद न हो जाए… ठंड जल्दी लग जाती है तुझे।”
तब वो चिढ़ गया था,
“माँ प्लीज़ सो जाओ! इतना भी क्या हो गया है?”
आज वही बात उसके दिल में तीर की तरह चुभ रही थी।
कमरे की ख़ामोशी और स्वेटर की मौजूदगी
कमरे में हीटर खराब पड़ा था।
हवा में ठंड थी, लेकिन उसके हाथों में स्वेटर था-
और उस स्वेटर में उसकी माँ की पूरी उम्र का प्यार।
आर्यन ने धीरे से स्वेटर को चेहरा लगाकर सूँघा…
अब भी वही हल्की हल्दी और सरसों के तेल की खुशबू।
उस खुशबू ने उसकी आँखें भर दीं।
उसे ऐसा लगा जैसे माँ अभी भी उसके बाल बिगाड़ते हुए बोल रही हों,
“चलो, स्वेटर पहन लो… नहीं तो छींके मारते रहना।”
वो अचानक बैठ गया, और आँसू उसके गालों पर बहने लगे।
शायद ये वही प्यार था
जिसे उसने बड़ा होते-होते कहीं खो दिया था।
🌙 एक अकेली, लंबी रात
रात के 1 बज रहे थे।
फ्लैट शांत था, सड़क पर कुत्तों की दूर से आती आवाज़ें, और बाहर चलती हवा की सीटी…
आर्यन ने स्वेटर पहन लिया।
और जैसे ही उसने पहना…
एक ऐसी गर्माहट महसूस हुई जिसे उसने सालों से महसूस नहीं किया था।
ऐसा लगा जैसे माँ ने खुद उसे गले लगाया हो।
जैसे उनके हाथ उसके कंधों पर हों…
जैसे वो कह रही हों,
“मैं हूँ न तेरे साथ… बस तू मुस्कुरा दे।”
आर्यन अचानक रो पड़ा-पूरी तरह टूटकर।
उसे लगा कि इस दुनिया में चाहे कितने भी लोग हों,
जैसी गर्मी माँ के प्यार में है,
वैसी कहीं नहीं।
☎️ माँ को कॉल
दो बजे के करीब उसने माँ को कॉल लगाया।
उसकी आवाज़ काँप रही थी।
माँ ने नींद में फोन उठाया,
“आर्यन? बेटा? सब ठीक है?”
आर्यन बोल ही नहीं पा रहा था।
उसने मुश्किल से कहा,
“माँ… मैंने वो पुराना स्वेटर पहन लिया। बहुत अच्छा लग रहा है।”
कुछ सेकंड तक फोन के उस पार खामोशी…
फिर माँ ने धीमी आवाज़ में कहा,
“मैंने तेरे लिए ही बनाया था बेटा… तेरी ठंड मुझे नींद नहीं लेने देती थी।”
आर्यन की आँखों से फिर आँसू बहने लगे।
उसने कहा,
“माँ… मैं बहुत बदल गया था। माफ कर देना।”
माँ ने धीरे से कहा,
“बच्चे बड़े होते हैं बेटा… माँ का दिल नहीं बदलता।”
इन लाइन ने आर्यन की पूरी जिंदिगी बदल दी।
वो सात दिन – दिल छू लेने वाली Emotional Story
अगली सुबह का नया एहसास
सूरज की हल्की रोशनी कमरे में आई।
आर्यन स्वेटर पहने सो गया था।
सुबह उठकर उसने महसूस किया-
उसका पूरा मन हल्का है, जैसे किसी ने बोझ उतार दिया हो।
उसने तय किया-
वो माँ के कॉल कभी मिस नहीं करेगा।
वो हर सर्दी ये स्वेटर जरूर पहनेगा।
और सबसे जरूरी- वो माँ को अपनी ज़िंदगी में फिर से सबसे पहले रखेगा।
क्योंकि वो समझ चुका था-
“माँ का प्यार कभी पुराना नहीं होता…
हम बस बड़े होकर इसकी कद्र करना भूल जाते हैं।”