जंगल में बहुत ज़्यादा ठंड पड़ी हुई थी।
चारों तरफ बर्फ ही बर्फ थी।
पेड़ों की टहनियाँ सफेद दिख रही थीं और हवा इतनी ठंडी थी कि हर सांस धुआँ बनकर निकल रही थी।
हर साल ठंड के समय जंगल में एक बड़ी मीटिंग होती थी।
सब जानवर मिलकर बैठते थे और ठंड से बचने के प्लान बनाते थे।
इसे सर्दियों की सभा कहा जाता था।
लेकिन इस साल कुछ अजीब हो रहा था…
एक छोटी सी प्यारी गिलहरी थी – चिंटू।
बहुत चंचल, हमेशा दौड़ती-भागती रहती।
एक दिन उसने देखा कि उसके घर के पास वाले दो पेड़ों की छाल अंदर से सफेद हो गई है।
ऐसा लग रहा था कि बर्फ पेड़ों के दिल तक पहुँच गई है।
चिंटू डर गया,
“ये क्या हो रहा है…?”
तभी ऊपर से धीरे से एक सफेद उल्लू उतरी
सोफी, जो बहुत शांत और शर्मीली थी।
सोफी बोली,
“चिंटू… क्या तुमने देखा? पेड़ जम रहे हैं। मुझे बहुत डर लग रहा है।”
चिंटू ने हाँ में सिर हिलाया,
“हाँ, ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ।”
दोनों ने सोचा कि उन्हें ये बात सभा में ज़रूर बतानी चाहिए।
जंगल की मीटिंग
रात में चाँद बहुत चमक रहा था।
जंगल के जानवर एक जगह इकट्ठा हुए-
भालू, खरगोश, साही, लोमड़ी, हिरण… सब आए।
बीच में बड़े ओक के पेड़ पर बैठे थे उल्लू दादा, जो जंगल में सबसे समझदार थे।
उल्लू दादा बोले,
“जंगल में कोई बड़ी दिक्कत है। ठंड बहुत बढ़ गई है और हमें कारण पता करना होगा।”
तभी चिंटू और सोफी आगे आए।
चिंटू ने डरते-डरते कहा,
“हमने देखा… पेड़ अंदर से जम रहे हैं।”
सारे जानवर चौंक गए।
उल्लू दादा ने धीमे से कहा,
“ये साधारण ठंड नहीं है।
ये फ्रॉस्ट बीमारी है।
जब जंगल में प्यार, अपनापन और गर्माहट कम होने लगती है, तब पेड़ बीमार पड़ जाते हैं।”
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सब जानवर चिंतित हो गए।
हिरण बोला,
“दादा, इसका इलाज क्या है?”
उल्लू दादा बोले,
“जंगल के बीच में एक जगह है-वॉर्म हार्ट स्प्रिंग।
वही जंगल का दिल है।
अगर वह ठीक हो गया, तो पूरा जंगल ठीक हो जाएगा।”
पर वहाँ जाना बहुत मुश्किल था, और ठंड भी बहुत थी।
सोफी ने धीमे से कहा,
“मैं जाऊँगी…”
चिंटू ने तुरंत कहा,
“मैं भी! हम छोटे हैं पर कोशिश कर सकते हैं!”
उल्लू दादा मुस्कुराए,
“बहादुरी यही होती है, बच्चों। जाओ, जंगल तुम्हारी तरफ देख रहा है।”
दोनों अपनी यात्रा पर निकल पड़े।
बर्फ बहुत गहरी थी।
हवा इतनी तेज़ थी कि सोफी कई बार पीछे उड़ गई।
रास्ते में उन्हें एक घायल हिरणी मिली।
उसके पैर में चोट थी और वो ठंड से काँप रही थी।

चिंटू ने तुरंत अपनी गर्म फर से उसे ढका।
सोफी ने अपने पंख फैलाकर हवा रोकी।
हिरणी बोली,
“तुम दोनों बहुत अच्छे हो। जंगल तुम्हारे साथ है।”
ये सुनकर उनके मन में ताकत आ गई।
आगे रास्ते में एक बड़ी बर्फीली खाई थी।
सोफी तो उड़कर पार कर सकती थी, पर चिंटू नहीं।
सोफी बोली,
“चिंटू, रुकना मत। मैं कुछ करती हूँ।”
उसने बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़ों को जोड़कर एक छोटा पुल बना दिया।
चिंटू धीरे-धीरे चलकर पार हो गया।
जंगल का बीमार दिल
आखिर दोनों जंगल के बीच पहुँचे।
जहाँ गर्म पानी बहता था-वॉर्म हार्ट स्प्रिंग-वह पूरी तरह जम चुका था।
बीच में एक नीला पत्थर था,
जंगल का दिल,
जो बर्फ में फँस गया था।
सोफी ने गर्म सांस फूँकी।
चिंटू ने अपने नन्हे शरीर से पत्थर को गर्म करने की कोशिश की।
पर पत्थर गर्म नहीं हुआ।
सोफी की आँखों से आँसू निकल आए,
“हमसे नहीं होगा…”
चिंटू ने उसका हाथ पकड़ा,
“सोफी… जंगल का दिल शरीर की गर्मी से नहीं,
दिल की गर्मी से पिघलता है।
प्यार, दोस्ती और उम्मीद से।”
दोनों ने आँखें बंद कीं और जंगल की सारी खूबसूरत बातें सोचीं,
जानवरों की हँसी, पेड़ों की खुशबू, धूप की नरम रोशनी…
धीरे-धीरे पत्थर चमकने लगा।
बर्फ पिघलने लगी।
और स्प्रिंग फिर से बहने लगा।
जंगल का दिल वापस जाग गया।
गर्माहट पूरे जंगल में फैल गई।
पेड़ों का सफेदपन गायब होने लगा।
छोटे-छोटे झरने फिर से बहने लगे।
सारे जानवर खुशी से चिल्लाए,
“चिंटू! सोफी! तुमने हमारा जंगल बचा लिया!”
उल्लू दादा बोले,
“तुम दोनों छोटे हो,
लेकिन दिल तुम्हारा सबसे बड़ा है।”
सोफी शरमा गई।
चिंटू मुस्कुराया,
“हमने तो सिर्फ अपना जंगल बचाने की कोशिश की।”
उस दिन से हर साल सर्दियों की सभा में
सबसे पहले चिंटू और सोफी की कहानी सुनाई जाने लगी।
क्योंकि उन्होंने साबित कर दिया था
थोड़ा-सा प्यार, सबसे कड़वी ठंड भी पिघला देता है। ❄️❤️
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कहानी की सीख (Moral of the Story)
जब हम एक-दूसरे की मदद करते हैं, प्यार और अपनापन दिखाते हैं, तो बड़ी से बड़ी मुश्किल भी हल हो जाती है।
छोटा होने से कोई फर्क नहीं पड़ता – दिल बड़ा होना चाहिए।