Moral Story for Kids in Hindi: एक छोटा-सा गाँव था, हरे-भरे पेड़ों और रंग-बिरंगे फूलों से भरा हुआ। उसी गाँव में एक सात साल का लड़का रहता था, नाम था “आरव“। आरव बहुत शांत और सीधा बच्चा था। लेकिन उसकी आँखों में हमेशा उदासी छाई रहती थी, क्योंकि उसकी माँ अब इस दुनिया में नहीं थी। माँ की यादों के बिना उसका घर बहुत सूना लगता था।
पापा खेतों में दिन भर काम करते थे और आरव ज़्यादातर अकेला रहता था।
एक दिन सुबह-सुबह आरव की खिड़की पर एक हल्की-सी चोंच की आवाज़ हुई — टिक-टिक-टिक। उसने खिड़की खोली, तो देखा कि एक छोटी-सी पीली चिड़िया वहाँ बैठी थी। उसकी आँखों में चमक थी, और वह आरव को देख कर चहचहा रही थी — चूँ-चूँ।
आरव मुस्कराया। बहुत दिनों बाद उसके चेहरे पर मुस्कान आई।
“तुम कौन हो?” आरव ने धीरे से पूछा।
पीली चिड़िया की कहानी
चिड़िया ने जवाब नहीं दिया, लेकिन उसके सिर पर बैठ गई और प्यार से उसके बालों को चोंच से सहलाने लगी।
आरव ने उसका नाम रखा — “टुनि“।
अब हर दिन टुनि सुबह खिड़की पर आती, और आरव से मिलने जाती। वह चहचहाती, उसके लिए बीज लाती, और कभी-कभी पेड़ों से टपके फूल। आरव उसे अपनी कॉपी में बनी तस्वीरें दिखाता, उसके साथ बातें करता और माँ की कहानियाँ सुनाता।
एक दिन टुनि नहीं आई।
आरव ने पूरा दिन इंतज़ार किया। अगले दिन भी नहीं आई। तीसरे दिन भी नहीं।
आरव का मन बहुत दुखी हुआ। वह सोचने लगा — “क्या टुनि मुझे भूल गई?”
लेकिन चौथे दिन, जब वह खिड़की खोलने ही वाला था, तभी उसने एक फड़फड़ाहट की आवाज़ सुनी। टुनि थी, लेकिन वह बहुत घबराई हुई लग रही थी।
वह आरव की ओर इशारा करती हुई फड़फड़ा रही थी और फिर उड़ गई।
आरव समझ गया — “शायद टुनि को मेरी मदद चाहिए!”
वह जल्दी से अपने जूते पहने और खिड़की से बाहर कूद गया। टुनि आसमान में उड़ते-उड़ते बार-बार मुड़कर देखती और आरव उसका पीछा करता गया।
वे दोनों गाँव के बाहर, एक छोटे से जंगल की ओर बढ़े।
जंगल में एक पुराना पेड़ गिरा हुआ था। उसके नीचे कुछ पत्तों में अटका एक छोटा चिड़िया का बच्चा फँसा हुआ था। टुनि बार-बार उसके पास जाकर चहचहा रही थी। बच्चा डर के मारे कांप रहा था।
आरव ने जल्दी से पत्तों को हटाया और बच्चे को उठाकर धीरे से टुनि की ओर बढ़ाया।
टुनि ने चहचहाकर आरव को धन्यवाद कहा।
वहीं पास ही एक टूटी सी टोकरी पड़ी थी। आरव ने कुछ सूखी घास और कपड़ा रखकर उसमें घोंसला बनाया और चिड़िया के बच्चे को उसमें आराम से रखा। फिर वह टुनि को लेकर उस बच्चे के लिए दाना-पानी रखने लगा।
अब टुनि रोज़ आरव के पास नहीं आती थी, लेकिन हफ्ते में एक बार जरूर आती और आरव को अपने नए दोस्त (चिड़िया के बच्चे) के बारे में बताती।
आरव अब फिर से मुस्कुराने लगा था। माँ की यादें अब उतनी भारी नहीं लगती थीं, क्योंकि टुनि ने उसके दिल में फिर से प्यार, दोस्ती और भरोसे का बीज बो दिया था।
अब खिड़की पर हर सुबह एक उम्मीद की किरण चमकती थी — टुनि की चहचहाहट।
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सीख:
दोस्ती, प्यार और सहानुभूति से हम अकेलेपन और दुख को भी पार कर सकते हैं। कभी-कभी सबसे अच्छे दोस्त वे होते हैं, जो बोल नहीं सकते — लेकिन दिल की बात समझ लेते हैं।