Hindi Heart Touching Story: विवेक और स्नेहा की शादी को पंद्रह साल हो चुके थे। दोनों ने अपने रिश्ते में कई उतार-चढ़ाव देखे थे, मगर समय के साथ-साथ उनकी नज़दीकियाँ कम होने लगी थीं। विवेक अपने काम में इतना व्यस्त रहने लगा कि स्नेहा को उसकी ज़िंदगी से दूर होता महसूस होने लगा।
शुरुआती दिन
शादी के शुरुआती साल बहुत खूबसूरत थे। विवेक हर छोटी-बड़ी चीज़ में स्नेहा का ध्यान रखता था। सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक, दोनों साथ बैठकर अपनी दुनिया की बातें किया करते थे। मगर वक्त के साथ विवेक की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती गईं और काम का बोझ इतना बढ़ गया कि वह घर पर कम समय देने लगा।
स्नेहा को याद था जब विवेक पहली बार उसे बारिश में भीगने से बचाने के लिए खुद भीग गया था। वह हर छोटी खुशी को जीना चाहता था, मगर अब वह सिर्फ अपने करियर और दफ्तर की फाइलों में उलझा रहता था।
दूरी बढ़ने लगी
धीरे-धीरे स्नेहा को अकेलापन घेरने लगा। वह चाहती थी कि विवेक थोड़ा समय निकाले, लेकिन विवेक को लगता था कि वह स्नेहा के लिए ही तो मेहनत कर रहा है। दोनों के बीच प्यार था, मगर अब पहले जैसा उत्साह नहीं रहा।
एक दिन स्नेहा ने विवेक से कहा,
“विवेक, क्या हम पहले जैसे नहीं हो सकते? तुम मुझे अब पहले जैसा प्यार नहीं करते।“
विवेक ने मुस्कुराकर कहा,
“ऐसा कुछ नहीं है स्नेहा, बस काम बहुत बढ़ गया है। लेकिन मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ।“
स्नेहा चुप रह गई, मगर उसके दिल में एक खालीपन था। वह जानती थी कि विवेक उसे प्यार करता है, लेकिन अब वह प्यार सिर्फ शब्दों में रह गया था, एहसासों में नहीं।
एक मोड़
फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने दोनों की ज़िंदगी बदल दी।
विवेक ऑफिस में था जब उसे एक फोन आया। फोन उठाते ही उसकी आवाज़ कांपने लगी। अस्पताल से कॉल था, “आपकी पत्नी का एक्सीडेंट हो गया है, तुरंत आ जाइए।”
विवेक के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वह भागता हुआ अस्पताल पहुँचा। वहाँ स्नेहा बेहोश पड़ी थी, डॉक्टर कह रहे थे कि अगले 24 घंटे बहुत महत्वपूर्ण हैं।
उसने कांपते हाथों से स्नेहा का हाथ पकड़ा और पहली बार अहसास हुआ कि वह कितनी बड़ी गलती कर चुका था। काम के पीछे भागते-भागते उसने अपनी ज़िंदगी का सबसे अनमोल हिस्सा खो दिया था।
उसने स्नेहा के माथे को चूमा और फूट-फूट कर रोने लगा।
“स्नेहा, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारा साथ दिया, मगर तुम्हें वक्त नहीं दे पाया। मैं तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं हूँ। बस एक बार आँखें खोल लो, मैं वादा करता हूँ कि अब कभी तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूँगा।“
नई शुरुआत
कुछ घंटों बाद स्नेहा को होश आ गया। उसने धीरे से आँखें खोलीं और विवेक को पास बैठे देखा। उसकी आँखों में आँसू थे, मगर इस बार ये आँसू खुशी के थे।
विवेक ने उसका हाथ थाम लिया और कहा,
“अब मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता। तुम मेरी दुनिया हो स्नेहा।“
स्नेहा ने हल्की मुस्कान दी और धीरे से कहा,
“तो फिर इस दुनिया को पहले जैसा खूबसूरत बना दो।“
उस दिन के बाद विवेक ने अपने जीवन को बदलने का फैसला कर लिया। उसने काम और परिवार के बीच संतुलन बनाना सीख लिया। अब वह हर शाम स्नेहा के साथ बैठकर बातें करता, उसकी पसंद की चीज़ें करता और उसके साथ जीने के हर पल को संजोने लगा।

स्नेहा के एक्सीडेंट ने विवेक को अहसास करा दिया कि प्यार सिर्फ कहने से नहीं, निभाने से होता है। और जब इंसान को अपने किसी अपने को खोने का डर सताने लगे, तभी उसे समझ आता है कि असली खुशी कामयाबी में नहीं, अपनों के साथ बिताए पलों में होती है।
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प्यार को सिर्फ महसूस करना ही काफ़ी नहीं होता, उसे जताना भी ज़रूरी होता है। वक्त रहते अपनों की कद्र करें, क्योंकि जब वे दूर हो जाते हैं, तब एहसास होता है कि असली खुशी उन्हीं के साथ थी। 💕