रोहन 25 साल का लड़का था। मेहनत से रोज़ मज़दूरी करता था। कमाई ज़्यादा नहीं थी, पर दिल बेहद साफ़ था। सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से नहाना, एक कप चाय पीना और फिर काम पर निकल जाना – यही उसकी दिनचर्या थी।
उसकी माँ सुनीता देवी ने अकेले ही रोहन और उसकी बहन रीमा को पाला था। बापू को गुज़रे कई साल हो चुके थे। घर छोटा था, कमाई कम थी, पर प्यार बहुत था।
नई शादी, नया प्यार
कुछ ही महीने पहले रोहन की अरेंज मैरिज हुई थी- सिया से।
सिया बहुत ही सरल, समझदार और सलीकेदार लड़की थी। शादी के बाद रोहन सिया से इस कदर प्यार करने लगा कि उसे हर वक्त बस सिया ही दिखती थी।
घर में हर छोटी-बड़ी बात वह सिया से पूछकर करता था।
और जब भी कोई मुद्दा होता-
वह बिना सोचे-समझे सिया का ही पक्ष ले लेता।
कई बार ऐसा होता कि माँ कोई राय देती और रोहन तुरंत बोल उठता-
“माँ, अभी जमाना बदल गया है… आप हर चीज़ में मत पड़ो। सिया संभाल लेगी।”
माँ कुछ नहीं कहतीं। बस हल्की मुस्कान के साथ चुप हो जातीं।
रीमा भी मन दुखाकर चुप रह जाती।
सबसे बुरी बात यह थी कि सिया कभी भी उनसे ऐसा व्यवहार करने को नहीं कहती थी।
उल्टा, वह रोहन को समझाती-
“देखो रोहन, माँ और रीमा भी तुम्हारे अपने ही हैं। उनसे ऐसे बात मत किया करो।”
रोहन सुन तो लेता, पर उस समय उसके दिमाग पर ‘नई शादी वाला प्यार’ हावी रहता था।
रोहन पहले माँ की हर बात मानता था।
बहन की मदद करता था।
पर अब वह छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा कर देता।
एक दिन तो उसने माँ से कहा-
“अब मेरी शादी हो गई है, घर कैसे चलेगा ये सिया तय करेगी। आप बस रहने दो।”
माँ का दिल टूट गया।
रीमा रोने लगी।
सिया भी उस दिन बहुत दुखी हुई। वह बोली-
“रोहन, ये मत बोलो। मैं इतना हक नहीं चाहती कि तुम्हें अपने ही घरवालों से दूर कर दूँ।”
लेकिन रोहन को इस बात का एहसास ही नहीं था कि वह कितना बदल गया है।
वर्कशॉप में काम बढ़ता जा रहा था।
मालिक डांट देता, लोग जल्दी-जल्दी काम करवाते।
रोहन रोज़ थका हुआ आता, पर घर में भी माँ की बातें उसे चुभती थीं।
वह समझ ही नहीं पा रहा था कि गलती उसकी है, किसी और की नहीं।
सिया अंदर ही अंदर टूटी हुई थी।
वह चाहती थी कि रोहन घर के हर रिश्ते को इज़्ज़त दे।
पर हर बात पलटकर कैसे कहे?
उसका काम सिर्फ समझाना था, जो वह करती थी।
बड़ा हादसा – Story में मोड़
एक दिन वर्कशॉप में भारी इंजन फिसल कर रोहन के पैर पर गिर गया।
रोहन दर्द से चिल्ला उठा।
साथियों ने भागकर उसे अस्पताल पहुँचाया।
डॉक्टर ने कहा-
“घाव गहरा है। कुछ दिन बिस्तर से उठना भी मुश्किल होगा।”
उस समय सिया अपने मायके गई हुई थी- उसकी चचेरी बहन की सगाई थी।
जब लोग रोहन को घर लाए,
माँ ने उसे देखते ही रो दिया।
इसके बाद माँ ने उसके पैर सहलाए, दवा लगाई, सारा ख्याल रखा।
रीमा रातभर उसके पास बैठी रही,
उसके पैर पर पट्टियाँ रखती रही,
दवा का टाइम नोट करती रही।
पड़ोसी, रिश्तेदार, सब उसकी मदद करने आए।
किसी ने पैसे दिए,
किसी ने उसका काम पर मैनेज कराया,
किसी ने दवाई लाकर दी।
रोहन बिस्तर पर लेटा सोच रहा था
“जिन लोगों को मैंने इतने दिनों से नजरअंदाज किया… वही लोग मेरी इतनी मदद कर रहे हैं…“
उसके दिल में अजीब-सा दर्द हुआ।
वह खुद से ही शर्मिंदा हो गया।
पत्नी का लौटना
अगले दिन जब सिया को फोन पर ये बात पता चली,
वह एक पल भी नहीं रुकी।
रोते-रोते घर आई,
रोहन का हाथ पकड़कर बोली-
“ये क्या हो गया तुम्हें?
मुझसे क्यों छुपाया सब?”
रोहन बोला-
“मैं गलत था, सिया… मैं बहुत गलत था।
माँ और रीमा ने जो किया, वो मैं कभी भूल नहीं सकता।
मैंने हमेशा तुम्हें ऊपर रखा, और उन्हें इतना दुख दिया।”
सिया ने आँसू पोंछते हुए कहा-
“रोहन, प्यार मुझे भी चाहिए।
पर प्यार बाँटने से कम नहीं होता।
माँ-बहेन के होने से हमारा रिश्ता और मजबूत होता है।
अगर तुम उन पर गुस्सा करोगे, तो मुझे भी दुख ही होगा।”

इस बार रोहन ने उसकी हर बात दिल से सुनी।
दर्द ने उसे समझदार बना दिया था।
रोहन का बदला हुआ रूप
अगली सुबह रोहन माँ के पास गया,
उनके हाथ पकड़कर बोला-
“माँ, माफ कर दो…
मैंने तुम्हें बहुत दुःख दिया, न?”
माँ की आँखें भर आईं।
वह बोलीं-
“माँ कभी अपने बच्चों से नाराज़ नहीं रहती, बेटा… पर हाँ, तेरी बातों से दिल दुखता जरूर है।”
रीमा ने भाई को गले लगा लिया-
“अब ऐसे मत बोलना कभी।
हम सब तुम्हारे साथ हैं।”
रोहन रो पड़ा।
सिया भी उसके पास खड़ी रही,
और पहली बार रोहन ने समझा कि
पत्नी घर जोड़ती है, तोड़ती नहीं।
8. घर में फिर से खुशियाँ लौट आईं
कुछ दिनों में रोहन का पैर ठीक होने लगा।
अब वह पहले से ज़्यादा जिम्मेदार हो गया था।
- माँ की दवा समय पर लाता
- रीमा की पढ़ाई में मदद करता
- सिया का भी पूरा ख्याल रखता
- और हर बात में सबको साथ रखता

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घर में फिर से हँसी लौट आई थी।
माँ और सिया साथ में खाना बनातीं,
रीमा मज़ाक करतीं,
रोहन सबको देखकर मुस्कुराता रहता।
उसे अब समझ आ चुका था कि-
रिश्ते सिर्फ खून के नहीं होते,
बल्कि दिल के होते हैं।
और जो दुख-सुख में साथ खड़े रहें,
वही असली अपने होते हैं।
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Moral of the Story
रिश्तों में प्यार बाँटने से कम नहीं होता।
नई जिंदगी कितनी भी खूबसूरत हो, पर पुराने रिश्ते- माँ, बहन और परिवार – हमेशा सबसे पहले खड़े होते हैं।
जीवन में इंसान को हर रिश्ते को बराबर सम्मान और प्यार देना चाहिए, तभी घर में सच्ची खुशियाँ रहती हैं।