मोरल स्टोरीज़ इन हिंदी बच्चों के अच्छे संस्कार और चरित्र बनाने में बहुत मदद करती हैं। ये कहानियाँ सही और गलत में फर्क समझाने में कारगर होती हैं। शॉर्ट स्टोरीज़ इन हिंदी बच्चों का ध्यान खींचती हैं और उनकी भाषा को बेहतर बनाती हैं। मोरल स्टोरीज़ फॉर चिल्ड्रेन्स इन हिंदी के जरिए बच्चे ईमानदारी, दया और साहस जैसे अच्छे गुण सीखते हैं। एक अच्छी शॉर्ट स्टोरी इन हिंदी विद मोरल बच्चों के मन पर गहरा प्रभाव डालती है और उन्हें एक अच्छा इंसान बनने की सीख देती है।
ये रहीं अच्छी अच्छी Short Moral Stories for Childrens in Hindi
- पुराना स्वेटर: माँ की यादें | Emotional Story
- नन्हें बगुले का बिछड़ना | Story of Bird in Hindi
- दिल का रिश्ता – नई शादी | Emotional Story of Mother and Son in Hindi
- नेचुरा द्वीप के बौने और रहस्य | Bedtime Story
- गरीब गुलाम से राजा | Moral Inspirational Story in Hindi
- सर्दी में जंगल के जानवरों की मीटिंग | Winter Animal Story in Hindi
- वो सात दिन | दिल को छू लेने वाली Emotional Kahani in Hindi
- जंगल वाली खूबसूरत चुड़ैल | Witch Story in Hindi
- शादी के बाद पति पत्नी का रिश्ता | Emotional Love Story in Hindi
- चिट्ठी जो कभी भेजी नहीं | खामोश प्यार की दास्तान | Emotional Love Story
- टाइम ट्रेवल की जादुई हिंदी कहानी
- ग़रीब माँ और बेटे की कहानी | Emotional Story in Hindi
- भयानक राक्षस और राजा | Monster Hindi Story
- जादुई जिन्न की स्टोरी | Jinn Story in Hindi
- रहस्य्मयी जंगल का खज़ाना | Kahani in Hindi
- UP की भूतिया हवेली | Horror Story
- जादुई परियां और राक्षस | Fairies and Monster Tale
- अरब व्यापारी और चोर | Thief Story
- राजा और आग उगलने वाला ड्रैगन | Dragon Story in Hindi
- परियों की मदद | Fairy Story in Hindi
- दादी माँ की रात की कहानी | Bedtime Story
- जंगल की रहस्य्मयी चुड़ैल | Chudail Ki Story
- शेर का परिवार और शिकारी | Animal Story in Hindi
- नन्हीं परी की कहानियां | Little Fairy Stories in Hindi
- खिड़की वाली नन्हीं चिड़िया | Friend Bird Story
- दादी अम्मा, खरगोश का परिवार और दुष्ट शेर | Jungle Ki Kahani
- चुड़ैल का महल और खज़ाना | Chudail aur Khazaane Ki Kahani
28. समुंद्री लुटेरे, राक्षस और बहादुर आरव | Pirates Short Story in Hindi
बहुत समय पहले, नीले-नीले समुंदर के बीच एक छोटा-सा गाँव था – “सागरपुर।” वहीं रहता था आरव, एक सीधा-सादा, लेकिन बहुत जिज्ञासु लड़का। उसे हमेशा समुंदर से अजीब-सा लगाव था। वह घंटों किनारे बैठकर लहरों को निहारता, कभी छोटी नावों के साथ खेलने की कोशिश करता। उसके पिता एक मछुआरे थे और आरव भी उनके साथ जाया करता था।
एक दिन, जब हवा तेज़ चल रही थी और बादल गरज रहे थे, आरव अपने पिता से चुपके से छोटी नाव लेकर दूर निकल गया। उसे देखना था कि समुंदर के बीच क्या है, जहाँ तक कोई नहीं जाता। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था…
लहरों ने अचानक रूप बदल लिया, नाव पलट गई, और जब आरव ने आँखें खोलीं, तो वह खुद को एक बड़ी काली जहाज़ पर पाया।
वहाँ थे समुंदर के लुटेरे – Pirates!
उनकी आँखों में डर और लालच का मिला-जुला रंग था। उनके सरदार का नाम था ब्लेड कप्तान – एक लंबा, कठोर चेहरा वाला आदमी।
“अब तू हमारी हिरासत में है, छोटे!” कप्तान ब्लेड ने हँसते हुए कहा।
आरव डर गया, पर बोला, “मुझे बस घर जाना है...”
सारे लुटेरे हँसने लगे – “अब ये जहाज़ ही तेरा घर है!”
कैद का सफर और समुंदर का रहस्य
दिन बीतते गए। आरव को ज़बरदस्ती डेक साफ़ करवाया जाता, खाना कम दिया जाता। मगर उसमें एक बात थी – वो हार नहीं मानता था।
वह सबको मदद करता, किसी के ज़ख्म बाँध देता, किसी के लिए पानी लाता। धीरे-धीरे कुछ लुटेरे उसे पसंद करने लगे।
एक रात, समुंदर शांत था – पर अचानक जहाज़ हिलने लगा। पानी में से एक भयानक आवाज़ आई, मानो कोई पहाड़ गरज रहा हो।
सबके चेहरे सफ़ेद पड़ गए – “वो आ गया… समुद्री राक्षस!”
पानी फट गया, और एक विशाल जीव, जिसके दस लंबे टेंटेकल (भुजाएँ) थीं, जहाज़ को पकड़ने लगा। लहरें आसमान छू रही थीं।
सब लुटेरे डरकर भागे, मगर आरव डटा रहा।
वो दौड़कर कप्तान के पास गया, “हमें एक साथ रहना होगा, नहीं तो ये जहाज़ डूब जाएगा!”
कप्तान चिल्लाया, “तू क्या जाने लड़ाई?”
आरव ने जवाब दिया, “शायद मैं लड़ना नहीं जानता हूँ, लेकिन डर के सामने झुकना भी नहीं जानता!”
राक्षस से मुकाबला
आरव ने जल्दी से तेल के ड्रम लाकर राक्षस के मुँह की ओर फेंके, और मशाल से आग लगाई। लपटें उठीं, और राक्षस दर्द से पीछे हट गया।
लेकिन जहाज़ हिल रहा था, लुटेरे गिर रहे थे।
आरव ने चिल्लाकर कहा, “रस्सियाँ पकड़ो! एक-दूसरे को बचाओ!”
उसकी आवाज़ में डर नहीं था, बस हिम्मत थी।
लुटेरे भी उसकी बात मानने लगे।
आख़िरकार, सबकी मदद से राक्षस भाग गया – और जहाज़ बच गया।
लुटेरों के दिलों का बदलना
अगले दिन सूरज उगा, और हवा में शांति थी।
कप्तान ब्लेड ने आरव की ओर देखा – “आज अगर तू न होता, तो हम सब मारे जाते।”
उस दिन के बाद से सब आरव को ऐसे मानने लगे जैसे वो उनका कोई सगा हो।
धीरे-धीरे, आरव लुटेरों के बीच नेता जैसा बन गया।
उसने उन्हें समझाया –
“लूटकर कुछ पल की खुशी मिलती है, पर दूसरों को बचाकर दिल में सुकून मिलता है।”
वो उन्हें मछली पकड़ना सिखाने लगा, गाँवों में मदद करने ले गया, और एक-एक करके लुटेरे इंसानियत की राह पर आने लगे।
जहाज़ का नाम “Sea Devil” से बदलकर “Sea Guardian” रखा गया।
आखिरी सीन
जब जहाज़ एक दिन सागरपुर के किनारे पहुँचा, तो गाँव वाले हैरान रह गए।
कभी जिनसे सब डरते थे, वही लुटेरे अब गाँव में मदद बाँट रहे थे।
आरव के पिता ने बेटे को गले लगाया, आँखों में आँसू थे –
“तू सिर्फ़ मेरा बेटा नहीं, समुंदर का बेटा है, जिसने उसके तूफ़ानों को भी अपना बना लिया।”
उस दिन से आरव को सब कहते –
“आरव – समुंदर का मास्टर, जिसने राक्षस को हराया और लुटेरों का दिल जीता।”
Moral of the Story (कहानी से सीख):
सच्ची ताकत तलवार में नहीं होती, बल्कि हिम्मत, अच्छाई और दूसरों की मदद करने की भावना में होती है।
अगर दिल साफ़ हो और नीयत नेक हो, तो इंसान सबसे कठिन हालात में भी लोगों के दिल बदल सकता है।
आरव की तरह, हमें भी डर के सामने झुकने की बजाय, इंसानियत और अच्छाई से काम लेना चाहिए – क्योंकि अच्छाई सबसे बड़ा तूफ़ान भी शांत कर देती है।
29. हाथी और उसकी साइकिल | Elephant Story In Hindi
जंगल के बीच एक बहुत बड़ा हाथी रहता था, जिसका नाम मोंटी था। मोंटी बहुत सीधा-सादा और मेहनती था। वह अपने दोस्तों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता था। लेकिन उसकी एक अजीब सी इच्छा थी, उसे साइकिल चलाने का बहुत शौक था.

एक दिन, मोंटी ने जंगल के बाजार में एक चमकदार लाल रंग की साइकिल देखी। उसे देखते ही उसका मन मचल उठा। लेकिन साइकिल वाले ने हंसते हुए कहा, “अरे मोंटी भाई! यह साइकिल तुम्हारे लिए नहीं बनी। तुम तो बहुत भारी हो, यह साइकिल तुम्हारा वजन नहीं सह पाएगी!”
मोंटी को यह सुनकर बहुत दुख हुआ, और वह खूब व्यायाम यानि Exercise करने लगा ताकि वह दुबला हो जाए। पर भला ऐसा कैसे होता, वो तो एक हाथी था। लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने ठान लिया कि वह अपनी खुद की साइकिल बनाएगा, जो उसकी ताकत को सहन कर सके।
मोंटी ने पास के नदी किनारे से मजबूत लकड़ियाँ इकट्ठी कीं। फिर लोहार भालू की मदद से लोहे के पहिये बनवाए। खरगोश कारीगर ने बैठने के लिए एक आरामदायक सीट बनाई। तोते ने उसे रंग-बिरंगी पेंटिंग करके सजाया। कुछ ही दिनों में मोंटी की खुद की एक मजबूत साइकिल तैयार हो गई!
मोंटी की साइकिल बनाने में उसके दोस्त भालू, खरगोश, और तोते ने मदद की थी।
जब मोंटी पहली बार अपनी साइकिल पर चढ़ा, तो पूरे जंगल के जानवर देखने के लिए इकट्ठा हो गए। कुछ उसकी हिम्मत की तारीफ कर रहे थे, तो कुछ मज़ाक उड़ा रहे थे। मगर मोंटी बिना किसी की परवाह किए पैडल मारने लगा। पहले तो साइकिल डगमगाई, लेकिन थोड़ी ही देर में मोंटी ने साइकिल चलाना सीख लिया.
अहंकार और सीख
अब मोंटी जंगल में अपनी साइकिल चलाकर घूमने लगा। वह इतना खुश था कि धीरे-धीरे उसमें थोड़ा घमंड आ गया। वह दूसरों से कहने लगा, “देखो, मैं जंगल का सबसे अनोखा हाथी हूँ! तुम सब पैदल चलते हो, लेकिन मैं साइकिल पर घूमता हूँ!”
एक दिन, वो अपनी साइकिल लेकर नदी किनारे गया। वहां खरगोश, बंदर और हिरण पानी पी रहे थे। मोंटी ने ठहाका मारते हुए कहा, “अरे, तुम सब अब भी पैदल चलते हो? साइकिल चलाने का असली मजा तो मुझसे पूछो!”
मोंटी यह कहते-कहते भूल गया कि आगे रास्ता पतला था। अचानक उसकी साइकिल फिसली, और वह सीधे नदी में जा गिरा, जंगल के सभी जानवर हंसने लगे। मोंटी को अपनी गलती का एहसास हुआ।
वह झेंपते हुए बोला, “मुझे समझ आ गया कि सिर्फ कुछ नया सीखने से कोई महान नहीं बनता, बल्कि हमें दूसरों का सम्मान भी करना चाहिए।”
मोंटी ने अपने दोस्तों से माफी मांगी और उन्हें भी साइकिल चलाना सिखाने लगा। अब वह फिर से सभी का प्रिय बन गया। जंगल के जानवरों ने मिलकर और भी कई मजबूत साइकिलें बनाईं और अब पूरा जंगल साइकिल चलाने लगा!
इस हिंदी कहानी से सीख:
कभी भी अहंकार (घमंड) नहीं करना चाहिए, बल्कि अपने ज्ञान और कौशल (Skill) को दूसरों की भलाई के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।
मेरे प्यारे दोस्तों! My Story World नाम से यूट्यूब चैनल मैंने लांच किया है, जहाँ अब आप मज़ेदार कहानियां एनीमेशन के साथ देख भी सकते हैं।
तो इस नीचे लिंक से हमारे YouTube चैनल पे जाकर जल्दी से प्लीज़ सब्सक्राइब कर लीजिये।
30. खोया खज़ाना | Moral Story for Children
हरे-भरे जंगल में जहाँ ऊँचे-ऊँचे पेड़ आसमान से बातें करते थे, वहीं एक छोटा लड़का रमेश अपने पंखों वाले दोस्त, नीलू तोते के साथ एक रोमांचक सफर पर निकला था। ये कोई आम सफर नहीं थी, बल्कि एक गुप्त खजाने की खोज की थी, जिसके बारे में रमेश के दादा ने उसे बताया था।

रमेश को अपने दादा की पुरानी किताबों में एक पीला पड़ा कागज़ मिला, जिस पर एक रहस्यमयी नक्शा बना था। नक़्शे में जंगल के अंदर स्थित एक गुफा का जिक्र था, जहाँ राजा विक्रम का छुपा हुआ खजाना था।
नीलू बहुत बुद्धिमान और बातें करने वाला तोता था। उसने रमेश से कहा, “हमें सावधान रहना होगा, जंगल में कई रहस्य छुपे हैं।”
रमेश और नीलू ने जंगल में कदम रखा। चारों तरफ घनी हरियाली थी, पक्षियों की मधुर चहचहाहट गूँज रही थी। लेकिन जैसे-जैसे वे आगे बढ़े, रास्ता मुश्किल होता गया। अचानक वे दलदली जमीन पर आ पहुँचे। “रमेश, संभल कर!” नीलू ने चेतावनी दी।
रमेश ने एक लंबी टहनी ली और सावधानी से जमीन पर रखते हुए आगे बढ़ा। किसी तरह वे उस दलदल को पार कर गए।
आगे बढ़ते हुए वे एक पुराने मंदिर के खंडहर में पहुँचे, जहाँ चारों ओर लताओं ने सब कुछ ढँक दिया था। रमेश ने देखा कि नक़्शे के मुताबिक, उन्हें एक पत्थर की दीवार के पास जाना था, लेकिन वहाँ पहुँचते ही दीवार के पीछे से एक ज़ोरदार दहाड़ सुनाई दी।
अचानक, एक बड़ा शेर उनके सामने आ गया। रमेश के हाथ-पैर कांपने लगे। नीलू झट से रमेश के कंधे पर बैठा और बोला, “डरने की जरूरत नहीं, मैं इसे इसका ध्यान भटकाता हूँ।”
नीलू शेर के चारों ओर उड़ने लगा, जिससे शेर का ध्यान बट जाये। तभी रमेश ने अपनी जेब से एक गुड़ की डली निकाली और शेर के सामने फेंकी। शेर ने उसे चखा और धीरे-धीरे जंगल में चला गया।
रमेश और नीलू आगे बढ़े और आखिर उस रहस्यमयी गुफा के गेट तक पहुँच गए। गुफा के अंदर अंधेरा था, लेकिन रमेश के पास एक टॉर्च थी। जैसे ही उन्होंने अंदर कदम रखा, वहाँ कई चमगादड़ उड़ने लगे। गुफा के अंदर एक बड़ा पत्थर रखा था, जिस पर कुछ अजीब निशान थे। नीलू ने उन निशानों को ध्यान से देखा और कहा, “रमेश, यह राजा विक्रम की निशानी है।”
रमेश ने ध्यान से नक्शा देखा और पत्थर को धीरे-धीरे धकेला। अचानक, एक गुप्त द्वार खुल गया! अंदर एक बड़ा रूम था, जिसमें सोने की मूर्तियाँ, चाँदी के सिक्के और कीमती रत्न चमक रहे थे। रमेश की आँखें खुशी से चमक उठीं।
रमेश ने खजाने में से कुछ सिक्के और ज़ेवर अपनी छोटी थैली में रखे और फिर गुफा से बाहर निकल आया। उसने तय किया कि इस खजाने को गाँव के भले के लिए उपयोग करेगा।
जब वे गाँव लौटे, तो रमेश ने यह खजाना अपने दादा को दिखाया। दादा जी मुस्कराए और बोले, “सच्ची दौलत सिर्फ सोना-चाँदी नहीं होती, बल्कि हिम्मत और सच्चे दोस्त भी अनमोल खजाने होते हैं।”
नीलू खुशी-खुशी बोला, “तो क्या अब हमारे लिए कोई और रोमांचक सफर है?”
रमेश हँसा और बोला, “बिलकुल, अगला सफर जल्द ही!”
और इस तरह, रमेश और नीलू की यह रोमांचक सफर खत्म हुई, लेकिन नए रोमांचों की उम्मीद के साथ!
31. बैंगन और छोटी लड़की | Story of Brinjal in Hindi
एक छोटे से गाँव में राधा नाम की एक प्यारी सी लड़की रहती थी। वो बहुत चंचल, हंसमुख और अक़लमंद थी। उसकी माँ एक किसान थी, जो अपने खेतों में तरह-तरह की सब्जियाँ उगाती थी। खेतों में टमाटर, गोभी, मिर्च, लौकी और बैंगन की भरपूर फसल होती थी। लेकिन राधा को बैंगन बिल्कुल पसंद नहीं था।

राधा की माँ जब भी बैंगन की सब्जी बनाती, वो नाक-मुँह चढ़ाने लगती और खाने से मना कर देती। वो कहती, “माँ, ये बैंगन तो अजीब सा होता है। मुझे यह सब्जी बिल्कुल अच्छी नहीं लगती।” उसकी माँ उसे समझाने की बहुत कोशिश करती, लेकिन राधा की जिद के आगे वो हार जाती।
एक दिन राधा अपनी माँ के साथ खेत में गई। वहाँ उसने देखा कि बैंगन के पौधों में सुंदर बैंगनी रंग के बैंगन लटक रहे हैं। अचानक, उसे ऐसा लगा जैसे एक बैंगन उससे कुछ कह रहा हो।
राधा ने चौंककर इधर-उधर देखा, फिर ध्यान से सुना। हाँ, सचमुच एक बैंगन उससे बात कर रहा था!
“राधा! तुम मुझे पसंद क्यों नहीं करती?” बैंगन ने दुखी आवाज़ में पूछा।
राधा अचरज में पड़ गई। उसने हँसते हुए कहा, “अरे! सब्जियाँ भी बोलती हैं? लेकिन बैंगन भैया, सच कहूँ तो तुम मुझे स्वाद में अच्छे नहीं लगते।”
बैंगन ने आह भरते हुए कहा, “राधा, क्या तुम जानती हो कि मैं कितना फायदेमंद हूँ? मेरे अंदर बहुत सारे पोषक तत्व होते हैं। मैं सेहत के लिए बहुत अच्छा हूँ। फिर भी तुम मुझे नापसंद करती हो?”
राधा ने सिर हिलाया और बोली, “पर मैं तो सिर्फ आलू, गोभी और मटर ही खाना पसंद करती हूँ।”
बैंगन का जादू
बैंगन मुस्कुराया और बोला, “अगर मैं तुम्हें अपनी दुनिया दिखाऊँ, तो क्या तुम मेरी बात सुनोगी?”
राधा को बैगन की ये बात मज़ेदार लगी, उसने झट से हाँ कर दी। तभी जादू हुआ, अचानक राधा खुद को एक अनोखी दुनिया में पाई। वो बैंगनों के एक बड़े बाग में थी, जहाँ हर जगह सुंदर बैंगन उगे हुए थे।
फिर, एक बूढ़ा बैंगन सामने आया और बोला, “राधा, यह हमारी दुनिया है। हम सिर्फ तुम्हारे खाने के लिए नहीं उगते, बल्कि तुम्हारी सेहत का भी ध्यान रखते हैं। हमें खाने से शरीर में खून बढ़ता है, ताकत मिलती है, और बीमारियाँ दूर रहती हैं। अगर तुम हमें नहीं खाओगी, तो हमारी मेहनत बेकार चली जाएगी।”
राधा चुप हो गई। उसने कभी इस बारे में नहीं सोचा था।
तभी, उसने देखा कि बगीचे में कुछ बच्चे बीमार बैठे हैं। जब बैंगन की सब्जी उन्हें खिलाई गई, तो वे धीरे-धीरे ठीक होने लगे।
अब राधा को समझ में आने लगा कि बैंगन कितना उपयोगी है। वो बोली, “मुझे माफ़ कर दो, बैंगन भैया! मैं आज से तुम्हें ज़रूर खाऊँगी।”
जैसे ही उसने यह कहा, वो वापस खेत में आ गई।
घर पहुँचकर राधा ने माँ से कहा, “माँ, आज से मैं बैंगन की सब्जी खुशी-खुशी खाऊँगी!”
माँ यह सुनकर हैरान रह गई और खुशी से मुस्कुरा दी। उस दिन राधा ने स्वाद लेकर बैंगन की सब्जी खाई और उसे बहुत पसंद भी आई।
अब वो अपने दोस्तों को भी बैंगन के फायदे बताने लगी। धीरे-धीरे गाँव के कई बच्चे, जो बैंगन नहीं खाते थे, उन्होंने भी इसे खाना शुरू कर दिया।
कहानी से शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हर फल और सब्जी हमारे लिए फायदेमंद होती है। हमें बिना सोचे-समझे किसी भी चीज़ को नापसंद नहीं करना चाहिए, बल्कि उसके महत्व को समझना चाहिए।
अगर आप भी जानना चाहते हैं कि बच्चों को बिना चिल्लाए अनुशासन कैसे सिखाएँ? तो इस Parenting Tips को ज़रूर पढ़ें।
32. गाँव की गुड़िया और दादी का प्यार | Dadi Ki Kahani
छोटे से गाँव बालापुर में एक दस साल की लड़की रहती थी, जिसका नाम था गुड़िया। वो बहुत ही चंचल, हँसमुख और समझदार थी। गाँव की मिट्टी में खेलना, तालाब में कागज़ की नाव तैराना और आम के पेड़ पर चढ़ना उसे बहुत पसंद था। लेकिन उससे भी ज़्यादा उसे अपनी दादी से कहानियाँ सुनना अच्छा लगता था। उसकी दादी, मंगला देवी, बहुत समझदार और दयालु महिला थीं।

गुड़िया के माता-पिता शहर में काम करते थे, इसलिए वो अपनी दादी के साथ गाँव में ही रहती थी। दादी ने ही उसे अच्छे संस्कार, सच्चाई और मेहनत का महत्व सिखाया था। हर रात जब आसमान में तारे टिमटिमाते और गाँव में शांति छा जाती, तब दादी गुड़िया को अपनी गोद में बैठाकर कहानियाँ सुनातीं।
एक दिन गाँव में एक व्यापारी आया, जो तरह-तरह की सुंदर चीजें बेच रहा था, चमकती हुई चूड़ियाँ, रंग-बिरंगी साड़ियाँ, खिलौने और मिठाइयाँ। गुड़िया भी वहाँ पहुँची और उसकी नज़र मोतियों के सुंदर हार पर पड़ी। वो हार देखकर मंत्रमुग्ध हो गई।
“दादी, मुझे यह हार चाहिए!” गुड़िया ने जिद की।
दादी ने प्यार से समझाया, “बेटा, यह हार बहुत महंगा है। इसे खरीदने के लिए बहुत सारे पैसे चाहिए।”
गुड़िया को यह बात अच्छी नहीं लगी। उसने सोचा, काश मेरे पास ढेर सारे पैसे होते! उसी दिन उसने मन में ठान लिया कि वो बहुत पैसे कमाएगी और फिर जितनी चीजें चाहेगी, खरीद लेगी।
लालच का फल
अगले दिन गुड़िया ने गाँव में घूम-घूमकर छोटे बच्चों को कहानियाँ सुनानी शुरू कर दी और बदले में उनसे कुछ पैसे लेने लगी। धीरे-धीरे उसने काफी पैसे इकट्ठे कर लिए। लेकिन अब उसकी पैसों की भूख बढ़ गई।
फिर उसने गाँव की गलियों में फूल बेचना शुरू कर दिया। कुछ दिनों में उसके पास अच्छे पैसे इकट्ठा हो गए। अब वो रोज़ सोने से पहले अपने पैसे गिनती और खुश होती। पर धीरे-धीरे उसने महसूस किया कि उसकी कहानियाँ सुनने वाले बच्चे कम होते जा रहे थे, उसके दोस्त उससे दूर हो रहे थे, और उसकी दादी भी उससे कम बात करने लगीं थीं।
गुड़िया इस बदलाव से दुखी थी, पर उसे कारण समझ में नहीं आ रहा था।
सबक की सीख
एक दिन दादी ने गुड़िया को बुलाया और प्यार से पूछा, “बेटा, क्या तुम खुश हो?“
गुड़िया ने सिर झुका लिया। वो महसूस कर रही थी कि पैसे तो उसके पास थे, लेकिन अब वो पहले जैसी खुश नहीं थी।
दादी ने उसे एक कहानी सुनाई—”एक बार एक किसान के पास बहुत धन था, लेकिन वो इतना लालची था कि अपना समय सिर्फ़ धन इकट्ठा करने में लगाता था। उसने अपने परिवार, दोस्तों और गाँव वालों से दूरी बना ली। धीरे-धीरे, उसका धन तो बढ़ता गया, लेकिन जब वो बीमार पड़ा, तो उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। तब उसे एहसास हुआ कि असली धन प्यार और अपनापन होता है, न कि सिर्फ़ पैसे।”
गुड़िया को अब सब समझ में आ गया था। उसने अपने सारे पैसे उठाए और गाँव के जरूरतमंद बच्चों को बाँट दिए। अब वो फिर से खुश थी, उसके दोस्त वापस आ गए, और सबसे बढ़कर, उसकी दादी ने उसे गले से लगा लिया।
अगर आप भी कहानियां लिखकर पैसे कमाना चाहते हैं तो इस पोस्ट “स्टोरी लिखकर पैसे कैसे कमाएं” को पढ़ें।
इस स्टोरी से नैतिक शिक्षा
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि पैसे से खुशी नहीं खरीदी जा सकती। असली खुशी हमारे अपनों के साथ समय बिताने, प्यार बाँटने और दूसरों की मदद करने में है।
33. ज़हरीला सांप और खूबसूरत मुर्गा | Moral Story of Cock
एक गाँव में एक खूबसूरत, ताकतवर मुर्गा रहता था। वो रोज़ सुबह सूरज निकलने से पहले बांग देता, जिससे पूरा गाँव जाग जाता। गाँववाले उससे बहुत प्यार करते थे।

उसी गाँव के पास एक घना जंगल था, जहाँ एक चालाक और क्रूर साँप रहता था। वो अक्सर गाँव के छोटे जीवों का शिकार करता और मौका मिलने पर अंडे भी खा जाता।
एक दिन साँप ने सोचा, “यह मुर्गा बहुत घमंडी है। हर सुबह जोर से बांग देकर सबको जगा देता है। अगर मैं इसे हरा दूँ, तो पूरा गाँव मुझसे डरने लगेगा.”
साँप ने मुर्गे को चुनौती दी, “अगर तुम मुझसे जीत गए, तो मैं इस गाँव को हमेशा के लिए छोड़ दूँगा। लेकिन अगर मैं जीत गया, तो तुम्हें मेरा दास यानि नौकर बनकर रहना होगा.”
मुर्गे ने बड़ी बहादुरी से कहा, “चालाकी से नहीं, हिम्मत से जीत हासिल होती है। मैं तैयार हूँ.”
अब ठीक जैसे पहलवानों की कुश्ती होती है, वैसी ही कुश्ती मुर्गे और सांप के बीच हुई। साँप फुर्तीला और ज़हरीला था, लेकिन मुर्गा अक़लमंद था। उसने जल्दी ही साँप की चालों को समझ लिया।
जैसे ही साँप उस पर झपटा, मुर्गे ने जोर से अपने पंजों से जमीन पर वार किया, जिससे धूल उड़ गई और साँप की आँखों में चली गई।
साँप कुछ पल के लिए अंधा हो गया, और उसी मौके का फायदा उठाकर मुर्गे ने अपनी तेज़ चोंच से साँप के सिर पर वार कर दिया। दर्द से कराहता हुआ साँप ज़मीन पर गिर पड़ा।
साँप ने अपनी हार मान ली और बोला, “तुम मुझसे ज्यादा चतुर और साहसी हो। मैं यह गाँव छोड़कर जा रहा हूँ और कभी वापस नहीं आऊँगा।”
मुर्गे की जीत पर गाँव के लोग बहुत खुश हुए और उसकी बहादुरी की तारीफ़ करने लगे। अब वह न सिर्फ गाँव का पहरेदार था, बल्कि उसकी अकलमंदी की भी मिसाल दी जाने लगी।
शिक्षा:
समझदारी और हिम्मत से बड़ी से बड़ी मुसीबत को हराया जा सकता है।