माँ की भूख – एक सच्ची और दिल छू लेने वाली कहानी | Short Emotional Story in Hindi

दोस्तों आज Short Emotional Story in Hindi में हम एक माँ के त्याग और बलिदान की बहुत ही इमोशनल स्टोरी पढ़ेंगे, किस तरह एक माँ अपने बच्चे के लिए अपनी पूरी जिंदिगी लगा देती है, अपने सपने को त्याग देती है, ताकि उसका बच्चा कामयाब हो जाए।

Short Emotional Story in Hindi

गाँव के कोने में एक छोटा-सा घर था। दीवारें कच्ची, छत टपकती हुई, लेकिन उस घर में एक बहुत बड़ी दौलत थी – माँ का दिल।
उस घर में रहती थी फातिमा बीबी अपने चार बेटों और पति सलीम के साथ।

सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही फातिमा उठ जातीं।
मिट्टी के चूल्हे में लकड़ी जलातीं, धुआँ आँखों में जाता लेकिन वो मुस्कुराती रहतीं।
बच्चों के लिए रोटियाँ बनाती, पानी भरती, और फिर सबको प्यार से उठाकर खाना खिलाती।

घर छोटा था, पैसा बहुत कम, पर प्यार बहुत ज़्यादा था
हर दिन किसी न किसी चीज़ की कमी रहती – कभी आटे की, कभी तेल की, कभी दवाई की – लेकिन फातिमा हमेशा कहतीं,

“बस मेरे बच्चे मुस्कुरा लें, बाकी सब ठीक है।”

💔 पति की बेबसी – नौकरी नहीं, सिर्फ़ इंतज़ार

सलीम पढ़ा-लिखा आदमी था। ईमानदार भी था।
वो गाँव से शहर तक हर जगह नौकरी की तलाश में गया।
कई बार इंटरव्यू दिए, कागज़ भरे, लाइन में लगा रहा – लेकिन हर जगह एक ही बात सुनने को मिलती,

“थोड़ा पैसा दे दो भाई, काम हो जाएगा।”

सलीम का दिल टूट जाता।
वो कहता, “मेरे पास खुद के बच्चों के लिए दूध नहीं है, रिश्वत कहाँ से दूँ?

धीरे-धीरे उम्मीद भी कम होने लगी।
लेकिन उसने हार नहीं मानी।
एक दिन बोला, “अगर कोई मुझे नौकरी नहीं देगा, तो मैं खुद अपने हाथों से कुछ करूँगा।”

बस उसी दिन से उसने घर के पीछे के खाली ज़मीन पर मुर्गीपालन (चिकन फार्म) शुरू किया।
थोड़ी-सी ज़मीन में सब्ज़ी भी उगाने लगा।
धूप, बारिश, कीचड़ – किसी चीज़ की परवाह नहीं।

फातिमा भी साथ देती।
दिन में खेत में काम, शाम को घर का काम।
रात को थककर जब बिस्तर पर गिरती तो बस एक ही ख्याल आता —

“कल बच्चों को क्या खिलाऊँगी?”

माँ की भूख – जो किसी ने नहीं देखी

धीरे-धीरे हालत और भी खराब होती गई।
कभी-कभी घर में इतना कम खाना होता कि सबको पेट भर के नहीं मिलता।

एक दिन ऐसा आया जब घर में बस चार रोटियाँ थीं – और पाँच लोग।
चार छोटे बच्चे भूख से रो रहे थे।

फातिमा ने सब बच्चों की थाली में एक-एक रोटी रखी और खुद बोली –

“मुझे भूख नहीं है, मैं बाद में खा लूँगी।”

बच्चे खुश होकर खाने लगे।
फातिमा मुस्कुराई, पर अंदर से उसका पेट जल रहा था।

रात को जब सब सो गए, वो चुपचाप उठी, चूल्हे के पास गई, और सिर्फ़ पानी पीकर बैठ गई।
उसकी आँखों में आँसू थे।
वो आसमान की तरफ देखती हुई बोली –

“ऐ खुदा, मेरे बच्चों को भूखा मत रखना, चाहे मुझे भूखा रख लेना।”

ऐसे ही दिन, महीने और साल बीतते गए।
भूख उसकी साथी बन गई।
धीरे-धीरे उसका शरीर कमजोर पड़ने लगा।

बीमारी – जब माँ खुद टूटने लगी

एक दिन फातिमा बेहोश हो गई।
सलीम घबरा गया।
किसी तरह पैसे जुटाकर उसे अस्पताल ले गया।

डॉक्टर ने कहा,

“पेट में इंफेक्शन है, बहुत पुरानी बीमारी है। कई दिन तक खाना नहीं मिला होगा।”

सलीम की आँखों से आँसू बह निकले।
वो सोच रहा था – “मेरी औरत ने सबको खिलाया, खुद को नहीं।

कई महीने इलाज चला।
घर का खर्च फिर बढ़ गया, लेकिन इस बार किस्मत थोड़ी मेहरबान थी।

कई महीने बाद, जैसे ऊपरवाले को तरस आ गया हो, एक दिन सलीम को एक सरकारी दफ्तर में नौकरी मिल गई।
छोटा-सा क्लर्क का काम था, पर उसके लिए वो सबसे बड़ी खुशखबरी थी।

घर में पहली बार अच्छे कपड़े आए, बच्चों के लिए दूध आया, और रसोई से फिर से खुशबू आने लगी।
फातिमा की आँखों में आँसू थे, लेकिन इस बार वो खुशी के थे।

वो धीरे-धीरे ठीक होने लगीं।
अब बच्चे स्कूल जाते, सलीम रोज़ काम पर जाता, और घर में फिर से हँसी गूंजती।

🎓 बच्चों की मेहनत – माँ का सपना पूरा हुआ

समय बीतता गया।
सबसे बड़ा बेटा आरिफ़ कॉलेज में गया।
फातिमा दिन-रात दुआ करतीं,

“बस मेरा बेटा काबिल बन जाए।”

और ऊपरवाले ने सुन ली।
आरिफ़ को एक अच्छी नौकरी मिल गई।
उसके बाद एक-एक करके बाकी तीनों बेटे भी अपने पैरों पर खड़े हो गए।

अब घर पक्का बन गया।
दीवारों पर पेंट है, फर्श चमकता है, और रसोई में खुशबू फैलती है।
लेकिन माँ वही है – सादी, शांत, और हमेशा अपने परिवार के लिए दुआ करने वाली।

आज फातिमा बूढ़ी हो गई हैं।
बाल सफेद हो चुके हैं, चेहरा झुर्रियों से भरा है, लेकिन दिल पहले से ज़्यादा नरम है।

जब चारों बेटे उनके पास बैठते हैं, उनके पैर दबाते हैं, तो वो मुस्कुराकर कहती हैं –

“अब पेट नहीं जलता बेटा, क्योंकि दिल भरा है।”

वो अब भी कम खाती हैं, लेकिन अब कमी की वजह से नहीं,
बल्कि संतोष की वजह से।

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💖 अंत – माँ की ममता कभी भूखी नहीं रहती

माँ वो होती है जो खुद भूखी रहकर भी बच्चों को खिलाती है।
वो जो हर दर्द छिपा लेती है, ताकि उसके बच्चे मुस्कुराते रहें।
फातिमा की कहानी सिर्फ़ एक माँ की नहीं –
हर उस औरत की है जिसने अपने परिवार के लिए सब कुछ सहा, लेकिन कभी शिकायत नहीं की।

सच में, फातिमा जैसी माँएँ ही इस दुनिया की सबसे बड़ी दौलत हैं।

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माँ के त्याग की कहानी

एक छोटे से गाँव में रहने वाली निर्मला देवी और उनके बेटे रोहन की emotional story दिल को छू लेने वाली है। निर्मला देवी, एक साधारण गृहिणी थीं, जिन्होंने अपने बेटे को हर मुश्किल परिस्थिति में सहारा दिया। उनका जीवन संघर्षों से भरा था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

Short Emotional Story in Hindi
Short Emotional Story in Hindi

रोहन, बचपन से ही पढ़ाई में होशियार था। उसकी आँखों में बड़े-बड़े सपने थे। निर्मला देवी ने अपने बेटे के इन सपनों को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत की। वे सुबह-सुबह उठकर खेतों में काम करतीं, फिर दूसरों के घरों में झाड़ू-पोंछा करतीं ताकि रोहन की पढ़ाई का खर्चा उठा सकें।

रोहन को हमेशा से अपनी माँ का संघर्ष दिखाई देता था। उसने ठान लिया था कि वह कुछ बड़ा करेगा और अपनी माँ की जिंदगी बदल देगा। रोहन की मेहनत और लगन के कारण वह शहर के एक अच्छे कॉलेज में दाखिला पाने में सफल हुआ। यह खुशी का पल था, लेकिन इसके साथ ही निर्मला देवी के सामने एक नई चुनौती खड़ी हो गई। अब उसे रोहन की कॉलेज की फीस के लिए और अधिक मेहनत करनी थी।

निर्मला देवी ने अपनी छोटी सी जमीन गिरवी रख दी ताकि रोहन का दाखिला हो सके। रोहन को यह बात बहुत तकलीफ देती थी, लेकिन उसकी माँ ने हमेशा उसे समझाया कि यह सब उसकी पढ़ाई के लिए है।

शहर में पढ़ाई के दौरान, रोहन ने अपनी माँ की मेहनत को और गहराई से समझा। उसने महसूस किया कि उसकी माँ ने अपने सपनों को त्याग कर उसके सपनों को पूरा करने का बीड़ा उठाया है। वह अपने हर कदम पर अपनी माँ की मेहनत और त्याग को याद रखता।

चार साल की कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद, रोहन ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और उसे एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई। यह खुशी का पल था, लेकिन रोहन ने सोचा कि असली खुशी तब होगी जब वह अपनी माँ को उनका खोया हुआ सम्मान और सुख लौटा पाएगा।

नौकरी के पहले ही महीने में, रोहन ने अपनी माँ के लिए एक सुंदर सा घर खरीदने का फैसला किया। उसने अपनी माँ को शहर बुलाया और उन्हें घर दिखाया। निर्मला देवी की आँखों में आँसू थे। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनका बेटा इतना बड़ा सपना पूरा करेगा।

लेकिन रोहन ने सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रखा। उसने अपनी माँ की गिरवी रखी जमीन भी वापस खरीद ली और उन्हें वह खेत भी वापस लौटा दिया, जहां उन्होंने अपना जीवन संघर्ष करते हुए बिताया था। निर्मला देवी अब गर्व महसूस कर रही थीं कि उनका बेटा उनकी मेहनत और त्याग को समझता है।

इस कहानी का अंत बेहद भावनात्मक था। एक दिन, जब रोहन अपनी माँ के साथ घर के आँगन में बैठा हुआ था, निर्मला देवी ने कहा, “रोहन, मैंने तुझे बड़ा करने के लिए जो भी किया, वह मेरा कर्तव्य था। लेकिन तूने जो कुछ मेरे लिए किया, वह मेरे सपनों से भी बढ़कर है।”

रोहन ने अपनी माँ का हाथ पकड़ते हुए कहा, “माँ, जो कुछ भी मैं हूँ, वह आपकी वजह से हूँ। आपने मुझे जो शिक्षा और संस्कार दिए, वही मेरी ताकत हैं।”

उस दिन, दोनों माँ-बेटे ने महसूस किया कि असली खुशी पैसे या सफलता में नहीं, बल्कि अपनों के साथ बिताए गए सुखद पलों में है।

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Moral of the Story

यह कहानी सिर्फ एक माँ और बेटे की नहीं है, बल्कि हर उस रिश्ते की है जो त्याग, प्रेम और समर्पण पर आधारित है। जिस रिश्ते में प्यार होता है, वहां त्याग और समर्पण होता है, और सही मायने में इसी को तो रिश्तेदारी निभाना कहते हैं।

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